बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर-
भारतीय दर्शन में चार्वाक दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। वह किसी भी भारतीय दर्शन से मेल नहीं खाता। यह परंपरागत विचारों का कट्टर विरोधी है। फिर भी इसका महत्व कम नहीं है। यहाँ पर चार्वाक दर्शन का मूल्यांकन उसके गुणों एवं दोषों के आधार पर किया जाएगा।
चार्वाक दर्शन के गुण एवं दोष-
चार्वाक दर्शन को तीन भागों में विभक्त करके इसका मूल्यांकन करना आवश्यक है। इसके तीन भाग निम्न हैं-
ज्ञानमीमांसा - चार्वाक के अनुसार प्रत्यक्ष ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन है। यह अनुमान, उपमान, शब्द आदि किसी भी अन्य प्रमाण को स्वीकार नहीं करता। प्रत्यक्ष का क्षेत्र अत्यंत संकुचित है। इसके आधार पर भूत और भविष्य का ज्ञान नहीं हो सकता। वर्तमान के भी सभी पदार्थों का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा संभव नहीं है। यदि प्रत्यक्ष को ही एकमात्र प्रमाण माना जाए, तो ज्ञान का क्षेत्र अत्यंत संकीर्ण हो जाएगा। अतः प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन नहीं कहा जा सकता है।
अनुमान, उपमान, शब्द आदि को चार्वाक प्रमाण न मानकर अपना संकुचित दृष्टिकोण प्रदर्शित करते है। अनुमान का एक ओर तो चार्वाक खंडन करते हैं, किन्तु दूसरी ओर इसका खुलकर प्रयोग करते हैं। उनका कहना है "अनुमान और शब्द यथार्थ ज्ञान नहीं देते।" अपने इस कथन की स्थापना निश्चय ही अनुमान के आधार पर करते हैं, न कि प्रत्यक्ष के आधार पर। इस प्रकार, उनके सिद्धांत में आत्मविरोध उत्पन्न हो जाता है। अनुमान और शब्द ज्ञान का बहुत बड़ा अंश जुटाते हैं। यथार्थ ज्ञान के रूप इनकी अवहेलना करना स्वयं ज्ञान बड़ा अंश जुटाते हैं। इस प्रकार, अनुमान और शब्द का बहिष्कार करके चार्वाक ज्ञानरूपी इमारत पर जबरदस्त आघात पहुँचाते हैं।
चार्वाक की तत्वमीमांसा - चार्वाक दर्शन की तत्वमीमांसा उनकी ज्ञानमीमांसा पर आधारित है। चार्वाक के अनुसार प्रत्यक्ष ही ज्ञानप्राप्ति का एकमात्र साधन है। जिस वस्तु का प्रत्यक्ष संभव है, वह वास्तविक है और जिसका प्रत्यक्ष न हो सके, वह अवास्तविक है। इस आधार पर चार्वाक केवल जड़ को ही परम तत्व मानते हैं। संसार की उत्पत्ति के चार भौतिक तत्व है। चैतन्ययुक्त शरीर को ही आत्मा कहा गया है। आत्मा की अमरता काल्पनिक गप्पेबाजी है। क्योंकि शरीर के साथ ही आत्मा का भी विनाश हो जाता है। प्रत्यक्ष के आधार पर चार्वाक ने आत्मा और ईश्वर के अस्तिव का खंडन किया है। आध्यात्मिक सत्ता के रूप में आत्मा और ईश्वर कभी प्रत्यक्ष के विषय नहीं बनते, इसलिए चार्वाक इनका खंडन करते हैं। इस तरह चार्वाक एक ऐसे विश्व की रचना में विश्वास रखता है, जिसमें केवल भौतिक पदार्थ ही वास्तविक हो जिसमें प्रकृति का शासन चलता हो और जिसमें आत्मा और ईश्वर का सर्वथा अभाव हो।
चार्वाक की तत्वमीमांसा में भौतिकवाद के सभी दोष विद्यमान हैं। यह संसार की व्याख्या करने में असमर्थ है। भौतिक तत्वों के संयोग से चेतना की उत्पत्ति की व्याख्या करने में असमर्थ है। भौतिक तत्वों के संयोग से चेतना की उत्पत्ति की व्याख्या असंतोषप्रद हैं संसार की प्रक्रिया को यांत्रिक मानने का चार्वाक के पास कोई प्रमाण नहीं है। आत्मा की अमरता और ईश्वर का खंडन करने में चार्वाक का एकमात्र साधन प्रत्यक्ष समर्थ नहीं हैं। आत्मा और ईश्वर वस्तुतः प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं। इसलिए इनका खंडन प्रत्यक्ष के आधार पर करना कदापि तर्कसंगत नहीं है।
चार्वाक का आचारशास्त्र - चार्वाक का आचारशास्त्र 'भौतिकवादी सुखवाद कहा जाता है। इसके अनुसार भौतिक सुख ही जीवन क चरम लक्ष्य है। चार्वाक परंपरागत चार पुरुषार्थों (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) में केवल काम को पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार करता है तथा शेष तीनों पुरुषार्थों अर्थ, धर्म और मोक्ष क़ा खंडन करता है। चार्वाक के अनुसार, सुख की प्राप्ति के लिए ही व्यक्ति के सभी कार्य होते हैं। वर्तमान का सुख ही श्रेयस्कर है। शारीरिक या ऐंद्रिय सुख आध्यात्मिक सुख से जरा भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। खाना, पीना और मौज उड़ाना इस आचारशास्त्र का सामान्य नारा है। शुभ और अशुभ का निर्णय सुख के आधार पर ही किया गया है। इस प्रकार सुख देने वाला कर्म शुभ है और दुःख देने वाला कर्म अशुभ है। इस तरह धर्म और अधर्म की व्याख्या भी चार्वाक अपने ढंग से करते हैं। जिस कार्य से दुःख की अपेक्षा अधिक सुख मिले, वह धर्म है और जिससे सुख की अपेक्षा दुःख अधिक मिले वह अधर्म है। स्वर्ग और नरक को भी चार्वाक ने अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। स्वर्ग और नरक कहीं दूसरी दुनिया में नहीं है। ये दोनों इसी प्रकार संसार में हैं। जो लोग सुखी है, वे स्वर्ग में हैं और जो लोग दुःखी हैं, वे नरक में। पुनर्जन्म और मोक्ष को चार्वाक ने असत्य सिद्ध करने का प्रयास किया है। धार्मिक रीति रिवाज, यज्ञ, प्रार्थना आदि को इन्होंन निरर्थक एवं अंधविश्वास पर आधारित बताया है।
चार्वाक का पूरा आचारशास्त्र एक निम्नकोटी की नैतिकता प्रस्तुत करता है। यह सभी मानवीय मूल्यों पर गहरा आघात पहुँचाता है। इसके नीतिशास्त्र संबधी सिद्धांत मानव को पाशविक स्तर पर लाना चाहते हैं। इस प्रकार यह आचारशास्त्र पूर्णतया असंतोषप्रद सिद्ध होता है।
चार्वाकदर्शन में उपर्युक्त दोषों व गुणों को देखकर ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि यह दर्शन पूर्णरूपेण निरर्थक है। चार्वाक ने भारतीय विचारकों को सोचने का एक नया ढंग दिया है। भारतीय दर्शन की कई त्रुटियों की ओर इन्होंने विचारकों का ध्यान आकृष्ट किया है। वैदिक परम्पराओं ने भारतीय विचारकों ने अपने दर्शनों को चार्वाक द्वारा इंगित त्रुटियों से मुक्त करने का भरसक प्रयास किया और उन्हें इस दिशा में संतोषप्रद सफलता मिली। चार्वाक के क्रांतिकारी विचारों ने ब्राह्मणों के शोषण से भोली-भाली जनता को आंशिक छुटकारा दिलाया। इस तरह, चार्वाक के भौतिकवादी दर्शन ने अप्रत्यक्ष रूप में अन्य भारतीय दर्शनों को विचार करने के लिए नई दिशा दी है। इस प्रकार समाज में नई जागरुकता का विकास हुआ। अतः चार्वाकदर्शन का भारतीय दर्शन में महत्वपूर्ण स्थान है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
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